खेत में रखा एक पोर्टेबल टॉयलेट
आजकल मोदी जी द्वारा शुरू किये स्वच्छता अभियान के कारण टॉयलेट चर्चा
में हैं. आइये आज मैं भी इस विषय पर आप मित्रों को टॉयलेट इस के बारे में अपना एक
अनुभव बताता हूँ. क्या आपने कभी चलते फिरते यानि पोर्टेबल टॉयलेट के बारे में सुना
है? और वह भी ऐसे स्थान पर जहां हम भारतीय टॉयलेट की आवश्यकता ही नहीं समझते, मेरा
मतलब है खेतों में. मुझे विशवास है कि बहुत ही कम लोगों को इस बात का पता होगा कि दुनिया के एक देश में खेतों में खेत
मजदूर ऐसे टॉयलेट का प्रयोग करते हैं. भारत के गाँवों में तो खेत इस काम के लिए
सबसे लोकप्रिय स्थान है. पर मैंने अपने अमरीका प्रवास के दौरान ये पोर्टेबल टॉयलेट
देखे. इस से पहले मुझे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ नहीं था कि कहीं खेतों में निवृत्त
होने के लिए कहीं टॉयलेट का प्रयोग भी किया जाता होगा.
वैसे मैं अमरीका कई बार
गया हूँ, पर सन 2005 के टूर में मुझे अमरीका की विश्वप्रसिद्ध नर्सरी,
स्टार्क ब्रदर्स नर्सरी में जाने जाने का
अवसर मिला. बात को आगे बढाने से पहले मैं पाठकों को, विशेषकर हिमाचली पाठकों को,
इस नर्सरी के बारे में थोड़ी सी जानकारी देना चाहूंगा. यह वह नर्सरी है जहां सेब की
डैलिशियस किस्मे रैड, गोल्डन, रॉयल डैलिशियस आदि विकसित हुई थीं. सत्यानंद स्टोक्स सेब की ये किस्मे इसी नर्सरी से हिमाचल
में लाये थे. हालांकि हिमाचल में सेब की खेती अंग्रेज इससे पहले शुरू कर चुके थे, पर
हिमाचल में सेब की बागबानी इन्हीं किस्मो के आने पर सफल हुई.
नर्सरी के गेट के पास खडा मैं
यह एक बहुत ही बड़ी
नर्सरी है और 200 वर्ष पुरानी है. यहाँ रोजाना सैकड़ो मजदूर और कर्मचारी काम करते
हैं. इस नर्सरी का इतिहास भी बहुत दिलचस्प है. पिछले 200 सालों में इस नर्सरी में
कई उतार चढ़ाव आये. पर इस नर्सरी की कहानी किसी दूसरी पोस्ट में बताउंगा.
इस नर्सरी में मैंने एक अजूबा देखा। ऐसा मैने अपने जीवन में पहली
बार ही देखा हालांकि मैं दुनिया के बहुत देशों में घूम चुका हूँ। यह अजूबा था चलता
फिरता शौचलाय। यहाँ काम करने वाले मजदूरों को हमारे यहाँ की तरह निवृत्त होने के
लिए खेत का कोई कोना नहीं खोजना पड़ता। वे आराम से जब भी आवश्यकता पड़े तो इस शौचालय
का प्रयोग कर सकते हैं।
अन्य साथियों के साथ नर्सरी में मैं
ये
शौचालय लकड़ी और टीन की चद्दरों से बने होते हैं. इनमें कमोड रखा होता है. पानी और
और टॉयलेट पेपर की भी समुचित व्यवस्था होती
है. शौचालयों को सुबह गाड़ियों में लाद
कर, जिन खेतों में मजदूरों ने काम करना होता है, वहाँ रख दिया जाता है और
शाम को छुट्टी होने पर वापिस ले जाया जाता है। और इनकी सफाई आदि कर दी जाती है.
खेत में रखा एक दूसरा पोर्टेबल टॉयलेट
मेरा
इन टॉयलेटो
को अन्दर से देखने का मन हुआ पर मैं अपने इस कुतूहल को अपने अन्य साथियों, जो सब
अमरीकन थे, पर प्रकट नहीं होने देना चाहता था. इसलिए मैं चुपके से इनके भीतर गया और सारा सिस्टम देखा. फिर चुपके से
ही इन शौचलायों के कुछ चित्र लिए ताकि वापिस भारत जाकर अपने साथियों को साथियों को
दिखा सकूँ।
आपका
क्या विचार है? कभी हमारे खेत मजदूरों को भी ऐसी सुविधा मिल सकेगी?
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