पता नहीं मंडयाली बोली के इस शब्द “हरडपोपो” से आज कितने लोग परिचित
रह गए होंगे. क्योंकि समाज का यह वर्ग अब तकरीबन लुप्त ही हो गया है. पर पुराने
लोगों को इनकी अवश्य याद होगी. ये लोग घर घर घूम कर लोगों को उनका भविष्य बताया
करते थे. कई बार हाथ देख कर और कई बार फेस रीडिंग या ऐसे ही कुछ अन्य तरीके अपना
कर. इन लोगों की एक विशेष प्रकार की वेशभूषा हुआ करती थी. अपने काम के किये ये
अधिकतर अनाज आदि लिया करते थे
.
चिर काल से लोगों में अपने भविष्य के प्रति जिज्ञासा रही है. सब
जानना चाहते हैं कि भविष्य में उनके साथ क्या होने वाला है. मैं दुनिया में जहां
भी गया, मैंने ये हरड पोपो या भविष्य वक्ता किस्म के प्राणी अवश्य देखे.
आइये आज आपको जापान के हरडपोपुओं के बारे में
बताते हैं.
क्योतो की गेबोन स्ट्रीट
मूझे जापान में कुछ सप्ताह बिताने का अवसर मिला
था. मैं क्योतो शहर की प्रसिद्ध व्यापारिक सड़क, गेबोन स्ट्रीट के मैं एक होटल में
रुका था. वहां मैं लगभग एक सप्ताह रहा. शाम के समय सड़क के किनारे रोज़ वहां एक
जापानी भविष्य वक्ता महिला बैठी होती थी. वह हमेशा पारंपरिक जापानी वेशभूषा,
किमोनो पहने रहती. आपको मैं यहाँ बता दूं कि हालांकि किमोनो जापान की पारंपरिक और
राष्ट्रीय वेशभूषा है, पर इसे महिलायें अब केवल विशेष अवसरों पर ही पहनती हैं और
रोजाना उपयोग के लिए पश्चिमी ड्रेस जैसे स्कर्ट या जीन्स आदि ही का प्रयोग करती हैं. मुझे ये बताया गया कि
किमोनो सिलवाने में खर्च भी बहुत आता है और फिर इसकी संभाल भी करनी पड़ती है. महिलाएं
किमोनो के साथ वह बहुत ही गहरा मेकअप भी करती हैं. उनका चेहरा इतना अधिक पुता होता
है कि चमड़ी नज़र नहीं आती.
क्योतो की वह जापानी हरड पोपो महिला
यह जापानी महिला सड़क के किनारे एक स्टूल रख कर
बैठी होती. उसके आगे एक मेज़ हुआ करता था जिस पर एक मेजपोश बिछा होता था. मेजपोश पर
जापानी भाषा में कुछ पंक्तियाँ लिखीं होती थीं जो शायद उसका साइन बोर्ड होती थी.
मेज़ के ऊपर एक मोमबती जली होती थी और उस मोमबती को एक विशेष लैम्प शेड जिस पर भी जापानी
भाषा में कुछ लिखा रहता था, रखा होता था. यह महिला इस तरह बैठ कर अपने ग्राहकों का
इंतज़ार करती रहती थी.
मैं क्योतो विश्वविद्यालय के एम् एस सी हौरटीकल्चर के छात्र छात्राओं के बीच
मैं क्योतो में पांच या छः दिन रुका और हर शाम उस
महिला को वहीं बैठे देखा करता था. मैंने एकाध बार उससे बात करने की कोशिश की पर
उसको सिवाय जापानी के कोइ दूसरी भाषा नहीं आती थी. एक दिन मैंने उसकी एक फोटो भी
खेंची. हाँ वह जब भी मैं उधर से गुजरता, तो वह मुस्करा कर मेरे अभिवादन का उत्तर अवश्य
दे दिया करती थी. पता नहीं यह संयोग था या सच्चाई, पर मैंने उस महिला के पास कभी कोइ
ग्राहक नहीं देखा. इसलिए कह नहीं सकता कि वह इस काम से कितना कमा लेती थी.
क्योतो के बाद मेरा अगला पड़ाव टोकियो था. वहां
मैं एक सप्ताह रहा. टोकियो में मैंने दूसरी किस्म के हरड पोपो देखे. ये मर्द थे और
मशीन से हाथ देखते थे. इनके पास एक डिब्बा किस्म का उपकरण होता था जो एक रेहडीनुमा
ठेले पर रखा होता था. इस उपकरण के ऊपर एक शीशा लगा होता था जिसके ऊपर ग्राहक को अपनी
हथेली रखनी होती थी. हरड पोपो एक स्विच दबाता, उपकरण में कुछ आवाजें होतीं और फिर
नीचे से दो कागज़ बाहर आ जाते जैसे कि कंप्यूटर के प्रिंटर से आते हैं. इनमे से एक
कागज़ पर आपकी हथेली की लकीरों की फोटोकॉपी होती और दूसरे कागज़ पर आपका भविष्य. हरड
पोपो कहता कि उसके उपकरण में कम्प्युटर लगा है जो आपके हाथ की रेखाओं को पढता है
और भविष्य बताता है. उस समय इस काम के वह 200 जापानी येन यानि लगभग 120 भारतीय
रुपये लेता.
क्योंकि इनका भी सारा काम जापानी भाषा में हो रहा
था, इस लिए मेरी समझ से बाहर था. वरना शायद तमाशा देखने के लिए ही शायद मैंने भी 200
येन खर्च कर दिए होते.
अगली बार आपको अर्जेंटीना के हरड पोपुओं के बारे में बताउंगा.
बहुत अच्छा और रोचक संस्मरण परमार जी धन्यवाद आपका
ReplyDeleteVery interesting.
ReplyDeleteहमारे यहां हरडपोपुओं की वो वाली विशेष नस्ल नहीं आती है अब 🙂