September 26, 2017

जिस दिन मंडी में राजा के राज का अंत हुआ




जैसा कि आप सबको पता ही होगा आज के हिमाचल प्रदेश का गठन सन 1948 में किया गया था. उससे पहले यहाँ छोटी बड़ी पच्चीस या छब्बीस रियासतें थी जिनपर राजाओं का शासन था. इन सब रियासतों का स्वतंत्र भारत में विलय करके नए राज्य हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया था.

       बाकी स्थानों पर ऐसा कैसे हुआ था यह तो मुझे मालूम नहीं है. पर मंडी रियासत के विलय की मुझे अच्छी तरह याद है हालांकि मेरी उम्र तब नौ साल की भी नहीं थी. उस वक्त मंडी में राजा जोगिन्द्र सेन का शासन था.

तत्कालीन मंडी रियासत का राज्यचिंह

       मेरे पिता मियाँ नेतर सिंह राजा के निजी स्टाफ में काम करते थे. वे राजा के निजी सहायक किस्म के कर्मचारी थे. हमेशा राजा के साथ रहते, डिक्टेशन भी लेते थे, सफ़र में राजा के निजी खर्च का लेन देन भी किया करते थे. निजी स्टाफ के लोग पैलेस में बने स्टाफ क्वार्टरों में रहा करते थे.

       मेरे दादा जमादार गौरी शंकर ने भी राजा के निजी स्टाफ में ही नौकरी की थी. असल में ये राजा काफी चतुर किस्म के शासक हुआ करते थे. उन्होंने अपनी रियासत में कुछ वफादार स्वामीभक्त परिवार चिन्हित किये होते थे. राजमहल से सम्बंधित कामों के लिए इन्हीं परिवारों से लोग रखे जाते थे. शायद इसलिए ताकि राजा और उसके परिवारजनों को कोइ ख़तरा ना हो और न ही राजमहल में होने वाली बातें बाहर जनता तक पहुँच सके. मेरे दादा जो बातें सुनाया करते थे, उससे अंदाज लगता था ये कर्मचारी अपने राजा के लिए बहुत ही समर्पित और वफादार हुआ करते थे. 

मंडी रियासत के अंतिम शासक राजा जोगिन्द्र सेन 
  
       मुझे तारीख तो याद नहीं है पर यह अच्छी तरह याद है कि उस दिन स्टाफ क्वार्टररों का माहौल काफी तनावपूर्ण था. सब लोग गुमसुम थे और आपस में धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे कि आज मंडी में राजा का राज ख़त्म हो जाएगा. जो सीधे सादे पुराने लोग थे, वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि अब क्या होगा. उनका सोचना था कि राजा के राज के समाप्त होने का मतलब था अराजकता. एब बुज़ुर्ग मेरे दादा जी से मंड्याली में कह रहा था, “मियां जी, भला ग्वालुँआ बगैर भी कदी डांगरे चरे” (मियाँ जी कभी बिना ग्वाले के भी पशु चराए जा सकते हैं). राजा के राज के अतिरिक्त कोइ दूसरी शासन व्यवस्था भी हो सकती है, ये उन लोगों की कल्पना के बाहर था.


मेरे दादा मियां गौरी शंकर जिनको विश्वास ही नहीं हो रहा था
कि मंडी में राजा का राज कभी समाप्त हो सकता है.

       मेरे दादा जी की एक चिंता और भी थी. वे कह रहे थे कि आज जरूर कुछ अनहोनी होगी. वे बता रहे थे कि मंडी के राजाओं को दसवें सिख गुरु का वरदान है कि मंडी में राजाओं का शासन हर हाल में चलता रहेगा और यदि कोइ मंडी को लूटेगा, तो उस पर आसमान से गोले बरसेंगे. मेरे दादा जी की नजर में राजा को हटा कर मंडी का शासन अंग्रेज चीफ कमिशनर को सौंप देना मंडी को लूटना नहीं तो और क्या था. यहाँ मैं यह भी यह बता दूं कि जब हिमाचल का गठन हुआ, तो प्रशासनाध्यक्ष चीफ कमिशनर को बनाया गया था और हिमाचल का पहला चीफ कमिश्नर एक अन्ग्रेज अधिकारी, ई. पी. मून, नियुक्त हुआ था.

       मंडी रियासत के भारत में विलय का एक सांकेतिक सा समारोह भी हुआ था. पर यह पब्लिक समारोह नहीं था. वहां कौन कौन लोग उपस्थित थे इसका ना तो मुझे पता ही था और ना ही इन बातों की समझ थी. समारोह  पैलेस के एक कोने में, जहां मंडी रियासत का झंडा लगा होता था, हो रहा था. जब राजा के राज की समाप्ति घोषित की गयी तब पैलेस में लगे ध्वज स्तम्भ पर मंडी रियासत का झंडा नीछे किया गया और और भारत का राष्ट्रीय तिरंगा झंडा ऊपर कर दिया गया. उस समय मंडी रियासत की सेना के बैंड ने धुनें भी बजाई थी.

       स्टाफ क्वार्टरों के एक कोने से पैलेस का झंडा दिख जाता था. स्टाफ क्वार्टरों में रह रहे कुछ मर्द और औरतों ने जिनमें हम बच्चे भी शामिल थे, डरते हुए छुप कर झाड़ियों की ओट से झंडों की यह अदला बदली देखी. सब कुछ क्षणों में शांतिपूर्वक हो गया. कोइ अनहोनी नहीं हुई. 

       मेरे दादा जी, जिनकी उम्र उस समय 65 वर्ष की रही होगी, बहुत हैरान थे. उन्हें पक्का विश्वास था कि उनके राजा की गद्दी कोइ नहीं छीन सकता. पर ऐसा हो गया और मंडी रियासत में पांच सौ वर्षों से चला आ रहे राजाओं का राज वगैर किसी विघ्न के समाप्त हो गया.