कई बार कुछ बातें आपको इतनी दिलचस्प लगती हैं की आप उन्हें जिन्दगी भर नहीं भूल पाते. ऐसी ही लगभग ५० साल पुरानी मेरे मित्र एम के सिंह द्वारा कही गयी यह बात मेरे मन में ऐसी बैठी कि मैं आज तक नहीं भूल पाया हूँ. जब भी यह बात याद आती है, हंसी नहीं रुक पाती. कह नहीं सकता कि आज की तारीख में एम के सिंह को अपनी कही यह बात याद भी है या नहीं.
शिमला की माल रोड
एम के सिंह मेरे एक
पुराने मित्र और सहयोगी हैं. हम दोनो सन ने १९६२ में एक साथ ही हिमाचल के
होर्टीकल्चर विभाग में नौकरी शुरू की थी. एम के सिंह अब रिटायरमेंट के बाद यू पी
में, जहां के वे मूल निवासी थे, रहने चले गए हैं पर फिर भी वह फेसबुक के माध्यम से
अपने पुराने साथियों से लगातार संपर्क बनाए रखते हैं
एक बार हम सब लोग किसी
मीटिंग के सिलसिले में शिमला आये हुए थे. यह कोइ प्रादेशिक स्तर की मीटिंग थी और
सारे हिमाचल से लोग आये थे. गर्मियों का मौसम था और शिमला शहर टूरिस्टों से भरा
था. शाम को मीटिंग के बाद सब लोग माल रोड की सैर को आ जाते और रौनक देखते और आपस
में गपशप करते. एम के सिंह शायद उन दिनों शिमला में ही नवबहार में पोस्टिड थे और
संजोली में रहा करते थे,
आज के एम् के सिंह धर्म पत्नी संग
एक दिन शाम को सब साथी मॉल रोड पर घूम रहे थे. मॉल रोड रंग
बिरंगे टूरिस्टों से भरा था. तब एम के सिंह बोले, यार, इन दिनों मॉल रोड पर नहीं
आना चाहिए. किसी ने पूछा क्यों. तो एम के सिंह ने बहुत गंभीर मुद्रा में उत्तर
दिया कि मॉल रोड पर एक से बढ़के एक सुन्दर औरतें दिखतीं हैं. इन सबको देखने के बाद
जब वापिस घर पहुँचने पर जब बीवी पर नजर पड़ती है, तो दिल करता है की इसको इसी वक्त
घर से बाहर कर दें.
Nice memories
ReplyDeleteNice joke sir.
ReplyDeleteI think it happens with every body some may not be vocal and accept but happens. My heartfelt condolences to departed soul may it rest in peace in the heaven
ReplyDeleteBhagwan divangat atmaa ko apne charnon mai sathaan dain
ReplyDeleteऐसे भाव सामान्य पर कष्टदायी होते हैं । तभी तो प्राचीन काल में यह दार्शनिक श्लोक प्रादुर्भाव हुआ होगा । इस निम्न चेतना को परिहार करने के लिए एम.के. सिंह की तरह सजग रहना चाहिए । उनकी आत्मा को परम शान्ति प्राप्त हो ।
ReplyDeleteसन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने ।
त्रिणु चैव न कर्तव्योSध्ययने जप दानयो ।।
(अपने घर में प्राप्त स्त्री वा पति, भोजन और धन ये तीन चीज पर सदा सन्तोष करना चाहिए । (क्यों कि यह प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त होते हैं ।) अध्ययन, जप और दान ये तीन चीज पर सन्तुष्ट नही रहना चाहिए । (क्यों कि यिन पर पुरुषार्थ चलाया जा सकता हैं ।)
Nice, memory sir.
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