मैंने कल ही ऋतू नंदा द्वारा लिखी राज कपूर की जीवनी पढ़ कर समाप्त की. मुझे जीवनियाँ और संस्मरण पढने का शौक है और मैं ऐसी पुस्तकें अक्सर खरीद लिया करता हूँ .
इस पुस्तक को पढ़ कर लगा कि वह कितने जीनियस थे . राज कपूर ने स्कूल के बाद पढाई नहीं की थी . ना ही उन्होंने फिल्म निर्माण में कोइ डिग्री या डिप्लोमा किया था. उनहोंने अपनी पहली फिल्म “आग”
केवल
२३ वर्ष की उम्र में बना ली थे. २४ साल की उम्र में ‘बरसात”
बनाई
जो
एक
महान
व्यावसायिक सफलता थी जब वे २७ साल के थे तब उन्होंने “आवारा” बनाई जिसके कारण वे रूस, चीन और अन्य बहुत से देशों में भारतीय राजनेताओं जितने लोक प्रिय हो गए थे.
इस पुस्तक में बहुत से प्रेरणादायक प्रसंग है . पर मुझे इस पुस्तक के पृष्ठ १६१ लिखी राज कपूर की इस बात ने बहुत ही प्रभावित किया.
“ईश्वर का शुक्र है कि मैं उच्च शिक्षित नहीं हूँ. शुक्र है किताबी कीड़ा नहीं हूँ, शुक्र है कि मैं ज्ञानी नहीं हूँ, शुक्र है भगवान् का मैं एक मूर्ख और जोकर हूँ. मैं सीधा सादा और जमीन से जुड़ा आदमी हूँ और इसीलिये अपने जैसे लोगों के साथ संवेदना के स्तर पर एकाकार हो पाता हूँ. मैं आम आदमी के साथ मुस्करा सकता हूँ और उसकी पीड़ा में भागीदार बन सकता हूँ और उसी के सामान फुटपाथ पर बैठ कर उसकी खुशी में शामिल हो सकता हूँ.”
क्या कभी आपको कोइ ऐसा व्यक्ति मिला जो कि इस बात का शुक्र मनाता हो कि ना तो वह उच्च शिक्षित है और ना ही ज्ञानी .
No comments:
Post a Comment