October 17, 2020

लोकगायक स्व॰ प्रताप चंद शर्मा और हम मुर्दापरस्त हिमाचल वाले

 साहिर लुधियानवी द्वारा लिखे फिल्म प्यासा के एक प्रसिद्ध गीत, “ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है” में एक पंक्ति है, “ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती”। यह बात सौ फीसदी सच है। यहाँ ऐसा ही होता है। इस सच्चाई का मैं आपको हिमाचल प्रदेश से ही एक उदाहरण दूंगा।

हिमाचल में काँगड़ी बोली के एक बहुत ही लोकप्रिय लोक गायक हुए हैं, प्रताप चंद शर्मा। वह अपने जमाने में स्टार लोक गायक हुआ करते थे और अपने कार्यक्रमों में खूब तालियाँ बटोरा करते थे। उनके गाये गीत आकाशवाणी शिमला से भी खूब बजा करते थे। वैसे वह बहुत साधारण व्यक्ति थे और शायद बहुत पढे लिखे भी नहीं थे। पर आवाज़ और प्रतिभा के धनी थे। वह अपने गीत स्वयं ही लिखा करते थे और उन्हें संगीतबद्ध भी खुद ही किया करते थे। उनका गाया एक गीत, “जीणा कांगड़े दा” बहुत ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय रहा है।

स्वर्गीय प्रताप चंद शर्मा   

वह जनसम्पर्क विभाग कांगड़ा से सम्बद्ध रहे। मैं 1968-69 में धर्मशाला में हौर्टीकल्चर डेवेलप्मेंट ऑफिसर हुआ करता था। हमारे दफ्तर के साथ वाली इमारत में डिस्ट्रिक्ट पब्लिक रिलेशंज ऑफिसर (डीपीआरओ) का दफ्तर हुआ करता था। डीपीआरओ प्रोफेसर (अब स्वर्गीय) चंदरवरकर हुआ करते थे। वे मेरे मित्र थे और मेरा उनके साथ अकसर बैठना हुआ करता था। वहाँ कई बार प्रताप चंद जी से भी मुलाक़ात होती रहती थी। मैं इसी ख्याल में था कि प्रताप चंद जन संपर्क विभाग के स्थायी कर्मचारी हैं।   


समारोह में मेरे साथ बैठे श्री प्रताप चंद शर्मा 

43 वर्ष बाद फरवरी 2013 में प्रताप चंद जी से कांगड़ा के टांडा में अचानक मुलाक़ात हो गई। उस दिन मैडिकल कॉलेज के सभागार में दिव्य हिमाचल समाचार पत्र वालों का वार्षिक पुरस्कार समारोह था। इस समारोह में प्रताप चंद जी को उस वर्ष का “हिमाचली ऑफ द ईयर” सम्मान मिलने जा रहा था। दिव्य हिमाचल के इस पुरस्कार में उनके अन्य पुरस्कारों की तरह केवल मोमेंटों ही नहीं होते, परंतु 50,000 रूपये की नकद राशि भी होती है। प्रताप चंद जी को उनको परिवार वाले यह पुरस्कार ग्रहण करने एक जीप में लेकर आए थे। इसी समारोह में मुझे भी उस वर्ष का “साइंटिस्ट ऑफ द  ईयर” पुरस्कार मिलना था और मैं भी परिवार सहित मंडी से टांडा आया था। मैंने प्रताप चंद जी को पहचान लिया और इतने वर्षों बाद उनको देख कर मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने उनसे बात भी की और उनको धर्मशाला के दिनों की याद दिलायी।

पुरस्कार प्राप्त कर रहे श्री प्रताप चंद शर्मा 

मुझे लगा कि वे सुखी नहीं थे। आर्थिक संकट में भी लगे। असल में मुझे इस बात का उस दिन ही पता लगा की वे जन संपर्क विभाग के स्थायी कर्मचारी नहीं थे बल्कि कैजुअल आर्टिस्ट थे। इसलिए उनको विभाग की ओर से कोई पैंशन आदि भी नहीं लगी थी। बहुत दुखी मन से उन्होंने मुझ से कहा कि साहब गाने में वाहवाही तो खूब मिली पर पैसा कोई नहीं मिला। हमारे समाज में निखट्टू बूढ़ों को परिवार में कितना सम्मान मिलता है, यह सभी जानते हैं।

समारोह में अपना प्रसिद्ध गीत "जीणा कांगड़े का" सुनाते 
श्री प्रताप चंद शर्मा 

उस दिन के समारोह में उन्होंने अपना प्रसिद्ध गीत, “ठंडी ठंडी हवा जे चलदी, हिलदे चिल्ला दे डालू, जीणा कांगड़े दा” भी गाया जिस पर सारा हाल तालियों से गूंज गया। मेरे लिए यह बहुत ही हृदय स्पर्शी दृश्य था। मुझे विश्वास है कि उन हालात में दिव्य हिमाचल द्वारा दिये गए उन 50,000 रुपयों से उनको काफी सहारा मिला होगा।

20 नवंबर 2018 को 90 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। सभी अखबारों में यह खबर छपी। अन्य लोगों के अतिरिक्त प्रदेश के गवर्नर आचार्य देवव्रत और मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर तक ने उनको श्रद्धांजलियां दी। तब सरकार को भी उनके योगदान की याद आई और उनको एक लाख रुपयों का “मरणोपरांत” पुरस्कार दिया गया।

काश उनके जीवनकाल में भी उनकी कोई आर्थिक सहायता हो पाती।    

ऐसे में मन में सवाल उठता है कि क्या हम सचमुच ही मुर्दापरस्त नहीं हैं?     

October 5, 2020

POSTMEN – IN SWEDEN AND IN INDIA

A few days back there was a news, “Postmen to get corporate makeover”, in Times of India.  It immediately took me 31 years back when I was in Sweden working as a guest scientist at the Division of Fruit Breeding of the Swedish University of Agricultural Sciences.   The Division, my place of work as well as the residence, was located at Balsgard, a village or suburb 12 km from Kristianstad, a small town in South Sweden.  Kristianstad had a population of about 20,000.  It was also a small administrative centre of the government.  Banks, post office, police station, government hospital etc. were located there.  There was a big supermarket and many large and small shops where people from neighbouring suburbs used to converge for shopping.

At that time Sweden was said to have the best telecommunication system.  It was very much needed too as Sweden is a quite large country but populated sparsely.  Every home had a telephone.   Telephonic communication had become so common that people in Sweden had stopped writing letters (as it is in India now).  The mail, the postman brought daily, contained only government letters, book packets or parcels.  One rarely saw a personal letter in the mail.


The postman who used to come to Balsgard in  his car

There was a change after I joined.  Personal letters also started coming.  I used to get a lot of letters from relatives and friends from India and elsewhere.  Internet had not started so all communication was through letters.


Logo of Swedish postal organization

Besides distribution of mail, the postman had one more function too.  Swedish post offices also had a bank called PK Banken.  This bank had a branch like other banks in the town.  But the postman was also acting as its representative.  He used to carry some cash and could enchash your cheques and also take deposit from you into your account.  Now our Department of Posts is also planning to do it soon.

On most of days, the postman used to be a young girl.  She was a very cheerful girl.  She would park her car at the gate and enter reception area.  The first thing she would do was to pick an apple from the basket which used to be kept on a table for visitors and start eating it.  She then handed over the Division mail to Christina, the Secretary.  After that she very loudly used to call “Parmar, get your letters”.  Among staff, I was the only one who had some letters every day.  So I was her favoured client.  I am sorry I have only a VHS video of this girl no photograph to share.

Main post office at Stockholm, Sweden.

On some says a middle aged man used to come with mail.  One day I requested him to pose for picture.  He agreed but asked what I was going to do with his picture.  I told him that I would take it to India and show it to our postman there.  Then he asked that what your postman would say.  I told him that he would say that take me to this country where postmen go in car for distributing letters.

We are reaching the stage where postmen are going high tech and getting corporate makeover.  Let us hope that in a few years will have cars too like Swedish postmen.