हिमाचल सरकार ने अभी कुछ
दिन पहले ही युवकों (?) को बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है. यह निर्णय सही है
या गलत, इस बारे में मैं कोइ टिप्पणी नहीं करना चाहता. यह काफी विवाद का विषय है.
पर हाँ स्वीडन में सरकार द्वारा दिए जाने वाले इस किस्म के भत्ते के बारे में यहाँ
कुछ बातें बताना चाहूँगा.
मैंने सन 1988 में छह महीने
के लिए स्वीडन में काम किया था. मैं वहां स्वीडिश युनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसिज़ में गेस्ट सांटिस्ट के
तौर पर गया था और मुझे इस काम के लिए उनकी ओर से फैलोशिप मिलती थी जिसके वहां के टैक्स
क़ानून के हिसाब से वेतन जैसी ही आमदनी माना जाता था और जिस पर इनकम टैक्स देय था.
मेरी पत्नी भी मेरे साथ थी. क्योंकि मुझे उन लोगों ने अपने काम के लिए बतौर
कंसल्टेंट बुलाया था, इसलिए वहां के क़ानून के हिसाब से मैं उन सब अधिकारों और
सुविधाओं का हकदार था जो वहां के नागरिकों को मिलते थे.
स्वीडिश यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसिस की मुख्य बिल्डिंग
आज वहां क्या स्थिति है,
इसका तो मुझे पता नहीं है, पर उस समय स्वीडन एक वैलफेयर स्टेट थी और शायद दुनिया
की एकमात्र वैलफेयर स्टेट थी. कहते थे की स्वीडिश सरकार अपने नागरिकों की जन्म से
लेकर अंतिम समय तक सारी देखभाल करती थी. उस समय स्वीडन के लोगों का स्टैण्डर्ड ऑफ़
लिविंग दुनिया के सब देशों से ऊंचा था.
पर मैं यहाँ यह भी बता दूं कि
यह सब फ्री नहीं था. उस समय तनख्वाह से 40 प्रति शत इनकम टैक्स सीधा कट जाया करता
था और इसके अतिरिक्त सैलरी का 15 प्रतिशत एमपलॉयर सीधा सरकारी ख़ज़ाने में बतौर सोशल
सिक्योरिटी जमा कराना होता था. सुनते थे की उस समय दुनिया में सबसे ज्यादा इनकम
टैक्स स्वीडन में था. टैक्स के सारा हिसाब किताब कम्यूटर से होता था और यह सिस्टम
ऐसा था की टैक्स की चोरी संभव नहीं थी. रिफंड वगैरा के लिए भी कोइ जद्दोजहद नहीं
करनी पड़ती थी.
अब आयें बेरोजगारी भत्ते
पर. स्वीडन में 18 साल की उम्र से पहले कोइ नौकरी नहीं कर सकता था. यह क़ानूनन
जुर्म था. पर जैसे ही कोइ १८ साल का होता, वह नौकरी का हकदार हो जाता. और अगर वह
आगे पढने के बजाय नौकरी करना चाहता तो, सरकार को उसे 15 दिन के भीतर नौकरी देनी
पड़ती. अगर ऐसा नहीं होता तो वह बेरोजगारी भत्ते का हकदार हो जाता और उसे यह भत्ता
मिलना शुरू हो जाता. भत्ते की रकम काफी होती थी. वहां मिलने वाले न्यूनतम वेतन से
थोड़ी ही कम.
पर इसमें कुछ शर्तें भी थी
जिससे आसानी से इसका दुरूपयोग नहीं हो सकता था. आपको जो भी काम दिया जाता था, वह
करना ही पड़ता था और जहां भी काम दिया जाता वहां जाना पड़ता था. हमारे यहाँ तो हरेक
पढ़े लिखा कुर्सी मेज़ वाली नौकरी चाहता है और दूसरी किस्म की नौकरी वह स्वीकार नहीं
करता. यूनिवर्सिटी में मेरी एक सहयोगी महिला वैज्ञानिक का पति शराब की सरकारी दूकान
में सेल्ज़मैन था. हालांकि वह भी अपनी पत्नी की तरह प्रशिक्षित फल वैज्ञानिक था, पर
उस समय फल विज्ञान के क्षेत्र में नौकरियां उपलब नहीं थी इसलिए उसे सेल्ज़मैन, वह
भी शराब की दूकान में, का काम दिया गया था जो उसे स्वीकार करना पडा था.
पता नहीं हिमाचल सरकार
बेरोजगारी भत्ता किस हिसाब से देगी और किन लोगों को देगी. क्योंकि यहाँ हरेक को
अपनी पसंद की नौकरी चाहिए और वह भी अपने घर के पास.
Sir, I think this is impossible in India.
ReplyDeleteSir, people are ashamed to do small things here.
ReplyDelete