May 8, 2021

पंडित सुख राम की उदारता

आज के राजनैतिक माहौल में हो सकता है कि पाठकों को इस लेख का शीर्षक कुछ अप्रासंगिक लगे। परंतु  प्रत्येक सफल व्यक्ति में कुछ ऐसी बातें अवश्य होती हैं जो जीवन में  उसको सफल बनाती हैं। मेरा विचार है  कि ये  बातें भी अवश्य बतायी जानी चाहिए ताकि दूसरे लोग भी उनसे सीख ले सकें।


पंडित सुख राम जैसे वे आज दिखते हैं

पंडित सुख राम ने बहुत लंबी राजनैतिक पारी खेली है और वे बहुत ही लोकप्रिय और सफल राजनेता रहे हैं। उनके घरों से करोड़ों  रुपये की धन राशि बरामद होने पर, फिर गिरफ़्तारी और भ्रष्टाचार के मुकद्दमों  के बाद भी मंडी की जनता ने उन्हें नहीं नकारा। यह बात जाहिर करती है कि उनमें “कुछ” तो ऐसी बात तो अवश्य  रही होगी कि इन सब के  बावजूद भी मंडी की जनता ने उनको फिर से अपना प्रतिनिधि चुनना स्वीकार कर लिया था। आइए आज मैं आपको उनके व्यक्तित्व संबंधी  एक पुराना किस्सा सुनाता हूँ। पता नहीं पंडित सुख राम जी को  आज यह बात याद भी  होगी या नहीं, पर मुझे पचास अधिक वर्ष बीतने के बाद भी अच्छी तरह याद है।

               बात सन 1969 की है। उस समय सुख राम  हिमाचल सरकार में कृषि मंत्री थे। उस समय हॉर्टीकल्चर भी कृषि विभाग के ही अंतर्गत हुआ करता था। मैं उन दिनों कांगड़ा जिले का हॉर्टीकल्चर डवेलपमेन्ट अफसर था। मेरा हेडक्वार्टर धर्मशाला हुआ करता था। उस समय तक कांगड़ा जिले का विभाजन नहीं हुआ था और ऊना और हमीरपुर भी कांगड़ा जिले के ही भाग हुआ करते थे

           

ज्वाला मुखी का पीडबल्यूडी का वह रेस्ट हाउस जहां यह घटना घटी थी              

                 पंडित सुखराम कांगड़ा के दौरे पर थे और रात को ज्वालामुखी रेस्टहाउस में रुके हुए थे। उनकी स्वर्गीय धर्मपत्नी, जिन्हें हम मंडी के लोग पण्डित्याणी जी कहा करते थे, भी उनके साथ थी। स्वर्गीय पण्डित्याणी जी के बारे मे मैं यहाँ एक बात बताना चाहूँगा कि वे बहुत ही सत्कारशील स्वभाव की महिला थी। जब भी मंडी का कोई व्यक्ति किसी काम से पंडितजी के पास गया होता, तो खाने या चाय आदि के लिए बहुत ही आत्मीयता से पूछा करतीं।

               उस दिन पंडित जी को जिले की कोई हॉर्टीकल्चर संबंधी जानकारी चाहिए थी। इसलिए उन्होंने मुझे वहाँ बुलावाया था। मैं वहाँ आया और उनसे आवश्यक बातचीत की, जो वह जानना चाहते थे, उनको बताया। यह सब ज्वालामुखी के रेस्ट हाऊस में ही हुआ।

               तब एक बहुत ही दिलचस्प बात हुई। पंडित जी वहाँ से कुछ देर बाद वापिस लौटने  वाले थे और उनका सामान, बिस्तर सूटकेस आदि पैक हो चुका था। उन दिनों जब अफसर टूर पर जाते थे तो अपना बिस्तर भी साथ ले जाया करते थे। तभी अचानक पण्डित्याणी जी कमरे में आई और पंडित जी से बोली कि देखो जी वो रेस्ट हाउस का चौकीदार बिस्तर खोलने को बोल रहा है। कहता है कि कमरे की एक चद्दर नहीं मिल रही है और वह देखना चाहता है कि कहीं हमारे बिस्तरबंद में तो नहीं आ गई है। वे थोड़ा गुस्से में भी लग रही थी कि क्या यह चौकीदार हमको इतना घटिया समझता है कि हम रेस्ट हाउस की चद्दर अपने साथ ले जाएंगे?


                  ज्वाला मुखी मंदिर तथा इसमें जलने वाली पवित्र ज्योति  

               मैं भी उस समय वहीं था। पंडित जी पण्डित्याणी की इस शिकायत पर बिल्कुल शांत रहे। उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं बिस्तर खोल दो और उसकी तसल्ली करा दो। पर पण्डित्याणी जी अभी भी नाराज लग रही थीं। इस पर पंडित जी ने बहुत ही शांत स्वर में उनसे  कहा कि देखो ये चौकीदार लोग गरीब मुलाजिम होते हैं। चद्दर इसके लिए बड़ी चीज है। अगर गुम हो गई तो इसको कीमत की भरपाई करनी पड़ेगी। इन लोगों के लिए यह रकम भी बहुत होती है। वह इस कारण  घबरा रहा है। आप  इसको बिस्तर खोल कर तसल्ली कर लेने दो। चौकीदार ने बिस्तर खोल कर चेक किया और तब उसकी तसल्ली हुई।

               हो सकता है कि बहुत पाठकों को मेरी इस बात का विश्वास न आए। पर यह सब मेरी आँखों के सामने घटा था।

               क्या आज के राजनेताओं से इतनी उदारता की अपेक्षा की जा सकती है?

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