July 23, 2020

ये मेरी माताजी के ब्वाय फ्रेंड हैं


यह दुनिया वास्तव में बहुत विविधता से भरी है। यहाँ बसने वाले इन्सानों के न केवल रंग रूप अलग हैं, पर सामाजिक रीति भी उतने ही अलग हैं। यहाँ मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। अँग्रेजी वाक्य ,my mother’s boy friend” का साधारण शब्दों में क्या आप ऐसा नहीं कहेंगे, “मेरी माँ का यार”। हमारे समाज में यह एक एक बहुत ही भद्दी और गंदी गाली है। अगर आप किसी को “तेरी माँ का यार” कह दें तो झगड़े और मार पीट की नौबत आ सकती है।
मैं और मेरे कॉलेज के सहयोगी

            आप विश्वास नहीं करेंगे की सारी दुनिया में ऐसा नहीं है। जब मैंने मोनरोविया के अत्यंत एक सम्मानित परिवार की महिला के मुंह से ये शब्द सुने, तो मैं सचमुच चौंक गया। खैर कहानी कुछ इस तरह है। उन दिनों मैं मोनरोविया के कृषि और वानिकी के कॉलेज में पढ़ाता था। एक दिन कॉलेज में मेरी एक महिला शिक्षक सहकर्मी ने मुझे अपने घर आने का निमंत्रण दिया जो मैंने बहुत खुशी से स्वीकार कर लिया।  वास्तव में, मैं हमेशा स्थानीय लोगों के घर परिवारों में जाने का और इनसे मेल जोल बढ़ाने का इच्छुक रहता था। मुझे उनके रहन सहन और सामाजिक रीतिरिवाज जानने में बहुत दिलचस्पी रहती थी। लाइबेरिया के लोग (मुझे बताया गया था कि अन्य पश्चिम अफ्रीकी देशों  के लोग भी) बहुत मिलनसार और मेहमाननवाज थे। वे शुरू शुरू में तो किसीअश्वेत को अपने घर ले जाने में अवश्य झिझकते पर शीघ्र ही उनकी झिझक, विशेष कर भारतीयों से, दूर हो जाती थी।  मैं अपने प्रवास के कुछ सप्ताहों के अंदर कई अफ्रीकी परिवारों से घुल मिल गया था।
एक लाइबेरियन मित्र परिवार के साथ मैं  

जब हम उसके घर पहुँचे तो मुझे उसने अपने घर के ड्राइंग रूम में बिठाया। धीरे धीरे परिवार के अन्य सदस्य भी वहाँ आ अगाए। उस देश में संयुक्त परिवार की प्रथा काफी प्रचलित थी इसलिए एक परिवार में कई कई सदस्य होते थे। मेरी महिला सहयोगी का नाम मारथा ब्लाह था और वह होम इक्नॉमिक्स की प्राध्यापिका थी। फिर उसने एक-एक करके अपने परिवार के सदस्यों से  मेरा परिचय कराना शुरू किया। उसकी मां, पचास पचपन वर्ष की रही होगी। उसकी माँ के बगल में एक वृद्ध बैठा था। मैंने मार्था से इस सज्जन के बारे में पूछा। मेरे इस सवाल से पहले तो थोड़ा सकपका गई पर फिर कुछ सोचकर बोली कि ये मेरी माता जी के ब्वाय फ्रेंड हैं।
अपनी लाइबेरियन सहेलियों के साथ मेरी पत्नी  पुष्पा 

            मुझे उसके इस जवाब से काफी हैरानी हुई क्योंकि मैंने इस रिश्ते में दिया गया परिचय, वह भी अपनी माँ के संबंध में, मैंने अपने जीवन में पहली बार सुना था।
            उस देश में आए मुझे अभी दो तीन ही महीने हुए थे। मेरे वहाँ काफी मित्र बन गए थे और मेरा बहुत अफ्रीकन घरों में आना जाना हो गया था। इसलिए इस प्रकार के अचंभे मुझे अक्सर होते रहते थे। बाद में मैं उन लोगो के रहन सहन और सामाजिक रीति रिवाजों का अभ्यस्त हो गया था।
            असल में अफ्रीका भारत से बहुत ही अलग है। अमरीका और योरोपीय देश भी हम भारतीयों को इतने भिन्न नहीं लगते जितना अफ्रीका। यहाँ का सब कुछ यानी लोग, जीव जन्तु, पेड़ पौधे , जलवायु ही अलग नहीं है, पर सामाजिक नैतिकता के मापदंड भी हमसे बहुत अलग हैं। 
            उनके समाज में पुरुष स्त्री सम्बन्धों में बहुत ही स्वच्छंदता है। हर पुरुष की कोई नारी और हर नारी का कोई न कोई पुरुष साथी होता है। अगर साथी विवाहित है तो वह पति या पत्नी कहलाएगा और यदि अविवाहित है तो ब्वाय या गर्ल फ्रेंड। इसके लिए उम्र की भी कोई सीमा नहीं है। न ही इस बात की कोई शर्म या निंदा होती है। हर किसी का कोई “साथी” अवश्य होना चाहिए। यह सामाजिक रूप से स्वीकृत है।  

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