वैसे तो हिमाचल में सेब की
खेती की शुरुआत कुछ अंग्रेज़ बाग़बानी प्रेमियों ने उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध
में इंग्लेंड में उगाई जाने वाली कुछ लोकप्रिय क़िस्मों के साथ कर दी थी, पर इस में व्यावसायिक सफलता कुछ दशकों बाद ही मिल सकी। और यहीं
से ही हिमाचल में सेब द्वारा लायी गई उस क्रान्ति का सूत्रपात हुआ
जिससे आने वाले वर्षों में प्रदेश की आर्थिकी ही बादल गई। यह तब हुआ जब श्री सत्यानंद स्टोक्स ने सेब की
डेलीसियस ग्रुप की अमेरिकन किस्में हिमाचल में लगाईं जो कालांतर नें इंगलिश
क़िस्मों के मुक़ाबले में बहुत ही सफल सिद्ध हुई और सेबों में जिनकी प्रभुत्त्वता
अभी तक कायम है।
स्टार्क ब्रदर्स नर्सरी के गेट पर मैं
सेब की इन क़िस्मों, रैड, रोयल, गोल्डन डैलिशियस आदि के पेड़ों को श्री सत्यानंद
स्टोक्स ने अमरीका की नर्सरी स्टार्क ब्रदर्ज से मंगाया था। यह अमरीका की एक बहुत
बड़ी नर्सरी है जो लगभग 200 साल पुरानी है और अमरीका के मिसूरी प्रांत में स्थित
है। मैं कुछ वर्ष पहले अमरीका गया था।
मुझे अमरीका के बाग़बानों की एक संस्था नॉर्थ अमेरिकन फ्रूट एक्सप्लोरर्ज़ (NAFEX) ने अपनी वार्षिक मीटिंग में हिमाचल के वन्य फलों पर भाषण देने
के लिए आमंत्रित किया था। उस दौरान मीटिंग के आयोजक हमें स्टार्क ब्रदर्ज नर्सरी
दिखाने भी ले गए। यह मेरे लिए बहुत ही हर्ष एवं उत्तेजना का अवसर था कि में उस
स्थान पर पहुँच गया था जहा से हमारे प्रदेश की औद्यानिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ
था। वास्तव में उस समय मुझे कुछ ऐसा मैसूस हुआ कि जैसे मैं किसी बड़े तीर्थस्थान पर
आ गया हूँ।
नर्सरी में हम सब लोग
स्टार्क ब्रदर्ज नर्सरी अमरीका के मध्य भाग में मिसूरी प्रांत के
लूसियाना शहर में स्थित है। इस नर्सरी की स्थापना 1816 में जेम्स हार्ट स्टार्क ने
की थी और यह नर्सरी तब से अब तक अनवरत सेवा दे रही है। बीच मे एकबार इसको बेच भी
दिया गया था। एक बार आर्थिक समस्याओं के कारण इसे दीवालिया भी घोषित कर दिया गया
था परंतु यह फिर से उसी स्थिति में आ गई।
मुझे नहीं मालूम की आज की स्थिति क्या है परंतु एक समय में इस नर्सरी को
दुनिया की सबसे बड़ी नर्सरी माना जाता रहा है।
स्टार्क ब्रदर्स नर्सरी का सेब की बाग़बानी में बहुत योगदान रहा
है। हिमाचल की सेब की सबसे लोकप्रिय किस्म रैड डेलीसियस इसी नर्सरी की देन है।
कहते हैं की जब इस नर्सरी के मालिक सी॰ एम॰ स्टार्क ने जब अमरीका के आयोवा प्रांत
के एक बागीचे में इस पेड़ का फल पहली बार चखा तो वह इसके स्वाद से इतने अभिभूत हो
गए की उनके मुख से बरबस ही निकाल पड़ा “डेलीसियस” यानि अत्यंत स्वादिष्ट और उसी समय
से इस किस्म का नाम डेलीसियस हो गया जो आज तक प्रचलित है। हालांकि उससे पहले इस
किस्म को हौक आई का नाम दिया गया था।
इसी तरह सेब की हिमाचल में उगाई जाने वाली दूसरी लोकप्रिय किस्म
गोल्डन डेलीसियस की खोज भी इसी नर्सरी वालों ने की थी। सन 1914 में इन्होंने वैस्ट
वर्जीनिया में बसे मल्लिञ्ज़ परिवार के बागीचे मे इसका पेड़ देखा और इसके फल उनको
बहुत स्वादिष्ट लगे। मल्लिञ्ज़ परिवार ने इस सेब को “मल्लिञ्ज़ यल्लो सीडलिंग” का
नाम दे रखा था। स्टार्क बंधुओं ने यह पेड़ मल्लिञ्ज़ परिवार से खरीद लिया, उसका नाम बदल कर गोल्डेन डैलिशियस रखा और यह भी तय हुआ कि
भविष्य मे केवल स्टार्क बंधु ही इस पेड़ से कलमें ले सकेंगे। कहा जाता है कि उन्हों
ने उसी समय इस पेड़ के चारों ओर बाड़ लगवा दी और इस तरह गोल्डन डेलीसियस सेब का जन्म
हुआ।
स्टार्क ब्रदर्ज केवल एक व्यापारिक संस्थान ही नहीं है। इस
संस्था का समूचे बाग़बानी उद्योग के विकास
में बहुत योगदान रहा है। कुछ वर्षों बाद प्रसिद्ध फ्रूट ब्रीडर लूथर बरबैंक
भी इस नर्सरी के साथ जुड़ गए और उन्होंने अपने द्वारा विकसित विभिन्न फलों की कोई
750 किसमें इस नर्सरी को दे दीं। मैं यहाँ यह भी बताना चाहूंगा कि हिमाचल में
उगाये जाने वाली कुछ अन्य लोकप्रिय किस्में,
जुलाई एल्बर्टा आडू तथा सेंटारोज़ा प्लम, इन्हीं लूथर बरबैंक की
देन है।
सेब की नर्सरी
स्टार्क ब्रदर्ज नर्सरी
में वैसे तो सभी फलों के पौधे तैयार किए जाते हैं,
पर मैं यहाँ केवल सेब की ही बात करूंगा। सौभाग्य से जिस दिन हम इस नर्सरी में गए, उस दिन यहाँ सेब के पौधे तैयार किए जा रहे थे। यहाँ सेब की
सारी पौध रूटस्टॉक पर ही तैयार की जाती है। ये लोग क्रैब ऐपल के बीजू पौधों का
उपयोग नहीं करते। क्योंकि यहाँ रूटस्टॉक
की क्यारियों की गुड़ाई आदि का सारा काम मशीनों से होता है,
इसलिये क्यारियाँ आकार में बड़ी तथा समतल रखी जाती हैं। जैसा की आप फोटो से अंदाजा
लगा सकेंगे, रूटस्टॉक
के पौधों की दूरी भी हमारे यहाँ के मुकाबले अधिक रखी गई है।
यहाँ पर पेड़ तैयार करने के लिए ये लोग हमारी तरह टंग ग्राफ्टिंग
विधि का प्रयोग नहीं करते बल्कि चिप बड्डिंग से करते हैं जो सर्दियों में नहीं
बल्कि गर्मियों में होता है। चिप बड्डिंग की पारंपरिक विधि में भी इनके मालियों ने
अपनी सुविधानुसार कुछ बदलाव किया है। बड्डिंग के काम को दो माली ( चित्र में यह मेक्सिको मूल की
लड़कियां हैं ) सम्पन्न करते हैं। अगले माली के हाथ मे बडस्टिक और चाकू होता है। वह
बड पहले रूट स्टॉक पर कट लगा कर बड रखने लायक स्थान बनाता है और फिर बड स्टिक से
एक बड निकाल कर वहाँ रख देता है और आगे बढ़ जाता है। इतने में दूसरा माली जो पहले
के पीछे पीछे चल रहा होता है वहाँ आ जाता है। उसके हाथ में पोलिथीन की पट्टी का रोल
होता है। वह बड के ऊपर पोलिथीन की टेपनुमा पट्टी को लपेट देता है। दोनों माली इस
सारे काम के बहुत ही मशीनी तेज़ी से करते हैं।
मेरे अनुमान से वे एक घंटे में सौ के आसपास बडिंग निपटा देते होंगे। मेरे
पूछने पर वहाँ के सुपरवाइज़र ने बताया कि उनके द्वारा की गई बडिंग लगभग सौ प्रतिशत
सफल रहती है।
नर्सरी में चिप बडिंग से सेब के पेड़ तैयार करते उनके माली
स्टार्क ब्रदर्ज नर्सरी में मैंने एक और अजूबा देखा। यह मैने
अपने जीवन में पहली बार ही देखा हालांकि मैं दुनिया के बहुत देशों में घूम चुका
हूँ। यह अजूबा था चलता फिरता शौचलाय। यहाँ काम करने वाले मजदूरों को हमारे यहाँ की
तरह निवृत्त होने के लिए खेत का कोई कोना नहीं खोजना पड़ता। वे आराम से जब भी
आवश्यकता पड़े तो इस शौचालय का प्रयोग कर सकते हैं। इन शौचालयों को सुबह गाड़ियों
में लाकर जहां मजदूरों ने काम करना होता है,
वहाँ रख दिया जाता है और शाम को छुट्टी होने पर वापिस ले जाया जाता है। मैने इस
शौचलाय के भी चित्र लिए ताकि भारत जाकर साथियों को दिखा सकूँ।
यह हरे रंग कया केबिन पोर्टेबलटॉयलेट है
जब
हम लोग वहां से लौटने लगे तो मैंने परमात्मा का मुझे इस जगह पर लाने के लिए बहुत
धन्यवाद दिया. इस स्थान पर मेरा आना मेरे लिए किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं था.
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