January 18, 2017

खोदा पहाड़ निकली चुहिया - कोपनहैगन की लिटल मर्मेड मूर्ति



दुनिया में कुछ स्थान ऐसे हैं जिनको पर्यटन की लिए बहुत ही प्रसिद्ध कर दिया गया है। परिणामस्वरूप प्रति वर्ष लाखों की संख्या में उन्हें देखने जाते हैं। और जब वहाँ पहुँचते हैं तो उन्हें अत्यंत निराशा हाथ लगती है और ऐसा लगता है कि वे तो ठगे गए हैं। उस समय उनके मुंह से यही निकलता है कि लो खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। मैं अपने पाठकों दो ऐसे विश्वप्रसिद्ध स्थानों के बारे में बतलाऊंगा जिन्हें मुझे देखने का अवसर प्राप्त हुआ।
      डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में समुद्र के किनारे एक जलपरी की मूर्ति है। इसे लिटल मर्मेडके नाम से जाना जाता है। यह एक कांसे की बनी छोटी सी मूर्ति है।  यह कोई बहुत पुरानी कलाकृति भी नहीं है। फिर भी पता नहीं यह कैसे इतनी मशहूर कर दी गई है। इसकी मशहूरी की स्थिति अब यह है कि यह मूर्ति अब कोपनहेगन शहर का प्रतीक बन गई है बिलकुल वैसे ही जैसे कि पेरिस का प्रतीक आइफल टॉवर या लंदन का प्रतीक बिगबेन घंटाघर। इसलिए जो भी पर्यटक कोपनहेगन घूमने आते हैं, लिटल मर्मेड को देखने जरूर जाते हैं। लिटल मर्मेड के दर्शन किए वगैर आपकी कोपनहेगन की सैर अधूरी समझी जाती है।
      मुझे 1988 में पत्नी सहित कोपनहेगन जाने का मौका मिला। उन दिनों मैं स्वीडिश कृषि विश्वविद्यालय के फ्रूट ब्रीडिंग डिविज़न में विजिटिंग साइंटिस्ट के तौर पर काम कर रहा था। हम दक्षिणी स्वीडन के एक शहर कृहनस्टाड में रहते थे। कोपनहेगन यहाँ से नजदीक ही था। इसलिए हमने निश्चय किया चलो सप्ताहांत में कोपनहेगन ही घूम आते हैं। हालांकि कोपनहेगन बहुत बड़ा मध्यकालीन यूरोपीय शहर है और वहाँ बहुत सारी इमारतें और अन्य दर्शनीय स्थल हैं पर ना जाने लिटल मर्मेड क्यों इतनी मशहूर कर दी गई है। इसलिए हमने भी सबसे पहले वहीं जाने का निश्चय किया।
      लिटल मर्मेड जाने के लिए आपको बस से उतर कर काफी पैदल चलना पड़ता है। और ये रास्ता घुमावदार, गलीनुमा और तंग है। काफी चलने के उपरांत जब आप वहाँ पहुँचते हैं तो आपके वहाँ कोई भी मोनुमेंट जैसी चीज़ नज़र नहीं आती। जब आप दुबारा ध्यान से आस पास नज़र दौड़ाते हैं, तो आपको एक छोटी सी चट्टान पर रखी हुई लिटल मर्मेड की यह मूर्ति नज़र आती है जो आपकी किसी भी तरह से प्रभावित नहीं कर पाती। तब आपने मुंह से बरबस यही निकलता है, लो खोदा पहाड़, निकली चुहिया। यह स्थान समुद्र के किनारे है। सरकार की ओर से वहाँ कुछ लोहे के बेंच रख दिये गए हैं जहां धूप (उस दिन धूप थी और वहाँ की धूप तेज़ होती है) में चलकर थके हुए विभिन्न देशों से आए पर्यटक सुस्ता रहे थे और सब डेन्मार्कियों को कोस रहे थे कि खूब बेवकूफ़ बनाया।
      मेरे विचार में यहाँ अपने पाठकों को लिटल मर्मेड की इस मूर्ति के बारे में बताना भी उचित रहेगा। इस मूर्ति की स्थापना 1913 में की गई थी। एडवर्ड एरिक्सन नामक मूर्तिकार ने इसे बनाया था। कांसे की यह मूर्ति 1.25 मीटर ऊंची है और इसका भार 175 किलो है। यह बच्चों के प्रसिद्ध डैनिश कहानीकार हैन्स क्रिश्चियन एंडेर्सन की एक लोकप्रिय कहानी की प्रिय पात्र जलपरी की मूर्ति है। अनुमान है कि प्रति वर्ष इस मूर्ति लो देखने 10 लाख लोग आते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि इनमे 90 प्रतिशत हमारी तरह कुंठित होकर डेन्मार्कियों कोसते हुए लौटते होंगे। 

      वैसे मूर्तिकला के हिसाब थे देखा जाय तो यह मूर्ति हमारे यहाँ के मंदिरों की मूर्तियों के मुक़ाबले तो कुछ नहीं है, पर फिर भी बुरी नहीं है।

       यहाँ एक बात और भी बता दें कि चोर दो बार इस मूर्ति का सिर आरी से काट कर ले जा चुके हैं। दोनों बार नया सिर बना कर "प्रतिरोपित" किया गया है। पर यह इतनी सफाई से किया गया है कि देखने वालों को इस बात का बिलकुल भी आभास नहीं हो पाता। 



कोपनहेगन की लिटल मर्मेड की मूर्ति के पास मैं और मेरी पत्नी पुष्पा 


 कोपनहैगन की वो विश्व प्रसिद्ध  लिटल मर्मेड की मूर्ति  जिसको देखने सारे पर्यटक जाते हैं 
पर देखने के बाद निराश होकर और डैनिश लोगों को कसते हुए लौटते हैं.

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