बरसात का नौसम शुरू
हो गया है. सदापर्णी किस्म के पौधों को लगाने का यह सबसे उपयुक्त समय होता है.
इसलिए नए पेड़ रोपने का काम शुरू हो गया है.
इसके साथ ही विभिन्न सरकारी विभाग और कुछ
स्वयंसेवी संस्थाएं, जो अपनी ओर से पौधारोपण कार्य करवाती हैं, भी सक्रिय हो गयी हैं.
आये दिन हम अखबारों में विभिन्न सरकारी विभाग, जैसे वन विभाग, आयुष विभाग और बहुत
सी कतिपय समाजसेवी संस्थाओं द्वारा आयोजित किये गए पौधारोपण समारोहों के बारे में
भी पढ़ते रहते हैं. पूरे देश में ऐसे आयोजनों की संख्या लाखों में हो जाती है. और
यह कार्यक्रम देश में आधी सदी से अधिक समय से चल रहा है. सरकारी कार्यक्रम को वन
महोत्सव का नाम दिया गया है और इस को अधिकांश प्रान्तों में वन विभाग आयोजित करता
है.
वनमहोत्सव को प्रतिवर्ष देश के हरेक जिले में एक समारोह की ही तरह
मनाया जाता है और इस काम पर काफी खर्च भी हो जाता है क्योंकि समारोह में एक
“मुख्यातिथि” होता है. मुख्यातिथि के स्टेटस के हिसाब से पब्लिक के लोग होते हैं,
सरकारी कर्मचारी होते हैं, शामियाने आदि लगाए जाते हैं और भोजन नहीं तो समुचित चाय
पानी के व्यवस्था तो होती ही है. पेड़ लगाने के बाद भाषण होते हैं, खाना पीना होता
है और इस प्रकार समारोह समाप्त हो जाता है. अगले दिन के अखबारों में चित्रों सहित
समारोह की खबर भी छप जाती है.
पर क्या आप जानते हैं उसके बाद क्या होता है. उसके बाद उस स्थान पर ना
तो मुख्य अतिथि, ना पब्लिक के वो लोग व सरकारी अधिकारी जो वहां समारोह में उपस्थित
थे और जिन्होंने एक दो पेड़ लगाने का शुभ काम भी किया था, दोबारा जाते हैं. वन
विभाग का कोइ मजदूर के दर्जे का कर्मचारी कभी कभार चक्कर मार जाता हो. नये लगे
पेड़ों को शुरू में अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. उनको जंगली या आवारा जानवरों
से बचाना पड़ता है. उनकी, खासकर बरसात के मौसम में १५-२० दिन में गुडाई आदि भी करनी
पड़ती हैं ताकि अनावश्यक खर पतवार उनका विकास ना रोक दें. बरसात के मौसम के बाद कम
से कम एक साल तक उनकी सिंचाई भी करनी पड़ती है. तभी पेड़ ज़िंदा रह सकते हैं. पर ये
सब कोइ नहीं करता. पौधारोपण समारोह के बाद सब उन पेड़ों को भूल जाते हैं. परिणाम यह
होता है, कि इन समारोहों में लगे अधिकांश पेड़ महीने दो महीने में ही मर जाते हैं.
मैं मंडी में रोटरी क्लब से जुड़ा हूँ. रोटरी क्लब भी कई बार मंडी मंडी
के और आसपास ऐसे पौधारोपण समारोह आयोजित करता रहा है पर परिणाम वही हुआ है जो ऐसे
समारोहों का हमेशा से होता आया है यानी आज मुश्किल से कोइ पेड़ बचा हुआ दिखता है.
इस तरह के पौधारोपण समारोहों का क्या लाभ है. क्या यह धन की बर्बादी
नहीं है. पूरे भारतवर्ष में पिछले 6-7 दशकों से वन महोत्सव का कार्यक्रम चल रहा
है. जिसे अंतर्गत आज तक अरबों खरबों पौधे लगाए जा चुके हैं. पर वे पौधे कहाँ हैं.
इनके हिसाब से तो आज पूरे देश में पेड़ ही पेड़ होने चाहिए थे. पर कहाँ हैं वो सब
पेड़.
आश्चर्य की बात तो यह है कि अब इस बात को सरकार और जनता में लगभग सभी
सभी जान गए है कि इन कार्यक्रमों का अब तक तो कोइ लाभ नहीं हुआ है. शायद कभी हो भी
ना जब तक कि इनके कार्यान्वयन में पूर्ण बदलाव किया जाए. पर फिर भी इन कार्यक्रमों
की रस्म अदायगी जारी है.
पिछले दिनों हिमाचल में इसी तरह का एक और तुगलकी कार्यक्रम चला. पूरे
प्रदेश लोगों को मुफ्त “मैडीसनल प्लांट्स” बांटे गए. वैसे तो मैडीसनल प्लांट् की
कोइ पक्की परिभाषा नहीं है, क्योंकि पौधों के ऊपर लिखी गयी भारतीय पुस्तकों में
लगभग प्रत्येक पौधे का कोइ ना कोइ औषधीय गुण बताया गया है, फिर भी हम उस पौधे को आधिकारिक
रूप से मैडीसनल प्लांट् कह सकते हैं जो उद्योग में दवा बनाने के काम आता हो. पर इस
कार्यक्रम के अंतर्गत भी पौधों का चुनाव और बटवारा कोइ सुनियोजित ढंग से नहीं किया
गया. मुफ्त में पेड़ मिल रहे थे, सो जिसके हाथ जो लगा उसने वही ले लिया. बाद में लगाया
या नहीं, वो पेड़ बचे या मर गए, ये किसी को मालूम नहीं. ऐसे कार्यक्रम का कोइ लाभ
हो सकता था.
नए पेड लगने चाहिए. बल्कि इस काम की देश में आज बहुत आवश्यकता है. पर
यह काम सुनियोजित ढंग से विशेषज्ञों की राय के अनुसार होना चाहिए. किस स्थान पर
किस किस्म के पौधे की आवश्यकता है, यह विशेषज्ञों द्वारा तय किया जाना चाहिए और उन
जातियों के पौधे पहले नर्सरियों में तैयार किये जाने चाहिए. यह नहीं कि जुलाई के
महीने में जो भी पेड़ कहीं से मिल गए, वही रोप दिए.
सबसे जरूरी बात जो सबके ध्यान में रहनी चाहिए वह यह है कि पेड़ लगाने
का काम पेड़ को रोपने भर का नहीं है. असली काम तो उसके बाद शुरू होता है, यानी उस
लगाये गए पेड़ को जिन्दा रखना. इस बात का अंदाजा बहुत कम लोगों को होता है.
पौधारोपण कार्यक्रमों के आयोजक इस बात को अवश्य सुनिश्चित करें कि लगाने के बाद इन
पेड़ों की देखभाल कैसे होगी. नए पेड़ की कम
से कम दो साल तक पूरी देख भाल करनी पड़ती है तभी वह जिन्दा रहेगा. इस काम के लिए
मानव तथा अन्य संबद्ध संसाधनों की आवश्यकता होती है जिसकी व्यवस्था समुचित
कार्यक्रम शुरू किये जाने से पहले हो जानी चाहिए.