November 8, 2016

आचार्य रजनीश और उनके अनुयायी



मैंने माँ आनंद  शीला  द्वारा  लिखी पुस्तक, DON’T KILL HIM – The story of my life with Bhagwan Rajneesh, पढ़ कर समाप्त की है. मुझे संस्मरणात्मक पुस्तकें पढने का शौक है और मैं अक्सर ऐसी पुस्तकें खरीदता रहता हूँ. हालांकि यह सर्वविदित सत्य है की संस्मरणों में या आत्मकथाओं में सब सच नहीं लिखा होता. अपने बारे में सब कुछ बताया भी नहीं जा सकता. बाकी जैसा कि प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह ने कहा है, अपने लेखन को मजेदार बनने के लिए थोड़ा नमक मिर्च लगाना भी जरूरी हो जाता है. हो सकता है कि इस महिला ने भी थोड़ा बहुत  कुछ ऐसा किया हो. 

आनंद शीला रजनीश की मुख्य सहायिका थी और बहुत वर्षों तक वह इस संस्था की नंबर दो भी रहींबाद में, जब रजनीश ने अपना आश्रम पूना से अमरीका के ऑरेगोन को स्थानांतरित कर दिया था, तब उसकी रजनीश से अनबन हो गयी और उनके सम्बन्ध इस हद तक बिगड़ गए कि रजनीश ने आनंद शीला पर संस्था का पैसा हड़पने का आरोप लगा कर ना केवल अपनी संस्था से निकाल दिया बल्कि उस पर पुलिस केस कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप आनंद शीला को अमरीका में जेल भी जाना पडा. 

मैंने रजनीश की कोइ भी पुस्तक नहीं पढी है केवल उसके बारे में ही पढ़ा है. मैं एक बार पूना में रजनीश आश्रम देखने भी गया था. अन्दर तो वहां किसी को जाने नहीं दिया जाता, पर बाहर से ही इन लोगों के रहन सहन का अंदाजा लग जाता है. जब मैं  वहां गया था तब रजनीश की मृत्यु हो चुकी थी. पर आश्रम अब भी चलता है और उनके देसी विदेशी अनुयायियों से भरा रहता है. वहां हरेक चीज़ बहुत ही हाई क्लास और  इसलिए महंगी भी है.  

पुस्तक आनंद शीला के रजनीश के सम्पर्क में आने से लेकर उनके अलग होने की पूरी कहानी बयान करती है. मुझे यह पुस्तक बहुत ही दिलचस्प लगी. मैं इसे जासूसी उपन्यास की तरह तकरीबन एक सांस में पढ़ गया.
यह पुस्तक रजनीश और उसके अनुयायियों के कार्यकलाप और रहन सहन का विस्तृत परिचय देती है. मेरी समझ में नहीं सका कि रजनीश में ऐसी क्या बात थी कि वह अपने अनुयायियों में इतना लोकप्रिय हो गया था.

पुस्तक में बहुत बातें लिखी हैं जो पाठक को विस्मित कर देती हैं. रजनीश आश्रम, आश्रमथा या ऐय्याशी का अड्डा. मैं यहाँ पुस्तक के पृष्ठ १९१ से एक पैरा उद्धृत कर रहां हूँ जो आनंद शीला ने अपने और अपने पहले पति चिन्मय के बारे में लिखा है. रजनीश के अनुयायी कैसे रहते थे, यह इस से पता चल जाता है. 

३१२ पृष्ठों की यह पुस्तक पढने योग्य है और अमेज़न पर १६२ रुपये में उपलब्ध है. 

 

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