अपने लाइबेरिया प्रवास के दौरान मुझे मैंने कुछ ऐसा सीखने को मिला जिसने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया क्या जो हम सोचते हैं वह ठीक हैं.
मैं वहां दो साल रहा.
इस अवधि में मेरे कई व्यक्तियों और परिवारों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हो गये थे।
धीरे धीरे, मेरे लाइबेरियन दोस्तों
ने मेरे साथ अपना दिल खोलना शुरू कर दिया था.
एक शाम मैं एक
दोस्त के घर बैठ कर अपनी और उनकी जीवन शैलियों के बारे में बातचीत कर रहे थे. मेरे
मित्र की पत्नी ने मुझसे पूछा कि आप हिन्दू अपने करीबी और प्रियों के प्रति इतने
क्रूर, अमानवीय और असंवेदनशील
कैसे हो जाते हैं। मेरी समझ में उसकी बात तुरंत नहीं आ सकी. तो फिर उसने विस्तार
से बताया कि जब भारतीय लोगों मे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो वे एक दम उसके साथ अपने पिछले संबंधों को
भूल जाते हैं और तत्काल उसके मृत शरीर को घर से बाहर निकाल कर आग के हवाले कर देते
हैं। आप ऐसे व्यक्ति के शरीर को, जो वर्षों तक आपका प्रिय रहा है, जलाने के बारे में
सोच भी कैसे सकते हैं और वह भी मृत्यु के
कुछ ही घंटों के भीतर? क्या यह अमानवीय
नहीं है? क्या हिंदुओं के ह्रदय में ज़रा भी संवेदनशीलता नहीं
होती?
मोनरोविआ का प्रमुख बाज़ार - ब्रॉड स्ट्रीट
हिन्दू अंतिम
संस्कार का यह पहलू मेरे मन में कभी नहीं आया था हालांकि बचपन से ही मैं मृत शरीर
को घर से जल्दी से जल्दी शमशान पहुंचाने प्रक्रिया को देखता आ रहा हूँ. तो क्या यह
महिला सच कह रही थी? महिला ने आगे कहा कि यहां अफ्रीका में मृत व्यक्ति के शरीर को
कुछ दिनों के लिए अपने घर या मुर्दाघर में रखा जाता है. कुछ धार्मिक रस्में जैसे wake keeping आदि, पूरी की
जाती हैं और फिर अंत में पूरे सम्मान के साथ मृत शरीर को दफनाया जाता है. मृतक की
याद में दफनाये जाने वाले स्थान पर कब्र का निर्माण किया जाता है, जहां मृतक के
मित्र और संबंधी समय समय पर जा कर फूल चढाते हैं, अगरबत्तियां और मोमबत्तियां जलाते
हैं. यह क्रम कई वर्षों तक, कभी कभी दो पीढ़ियों तक जारी रहता है. मैंने उनसे कहा
था कि हमारे मृतकों की याद रखने के लिए हमारे पास कुछ धार्मिक अनुष्ठान जैसे वार्षिक
श्राद्ध हैं पर इससे उसकी तसल्ली नहीं हुई। उसने फिर से कहा कि नहीं आप आप हिन्दू लोग हृदयहीन और बेरहम हो.
लाइबेरिया पश्चिम
अफ्रीका का एक बहुत ही छोटा सा देश है और इस के बारे बहुत कम लोगों को पता है. पर इस
देश की एक बहुत बड़ी विशेषता थी. वहां की प्रचलित मुद्रा अमरीकी डॉलर थी और जिसे
देश से बाहर भेजने में कोइ भी रुकावट नहीं थी. इसलिए यह एक ऐसा स्थान था जहां पर
आप अमरीका में ना रहते हुए भी अमरीकी डॉलर कमा सकते थे. इस कारण उस देश में बहुत
से भारतीय व्यापारी पहुँच गए थे और वहां एक काफी बड़ा भारतीय समुदाय, जिनमे अधिकतर
सिंधी व्यापारी थे, पैदा हो गया था.
स्वाभाविक था की
वहां समय के साथ मौतें भी शुरू होनी हो गयी. जब मृत शरीर को अंतिम संस्कार के लिए
मोनरोविया (राजधानी) के बाहर कुछ अलग स्थान पर ले जाया गया तो स्थानीय लोगों ने उन्होंने
इसका जोरदार विरोध किया और कहा कि वे अपने स्थानों के पास यह "गंदा" काम
नहीं होने देंगे। इससे भारतीय समुदाय के लिए समस्या पैदा हो गयी मृतकों कि का दाह
संस्कार कैसे करें?
वहां इन्डियन
एसोसिअशन नाम का भारतीयों का एक संगठन भी था। अंत में, यह संगठन बीच में पड़ा और सरकार के पास इस मामले को उठाया।
उन्होंने अधिकारियों को समझाया कि हिंदु धर्म की मान्यता के अनुसार के मृत शरीर को जलाने का ही नियम है. तब सरकार
ने मोनरोविया शहर के बाहर एक वीरान इलाके में एक अलग भूखंड इस काम के लिए वहां के भारतीय
समुदाय को दिया’.
लेकिन महिला की
बातों ने एक बार सचमुच ही मुझे सोच में डाल दिया. क्या हम हिंदु वास्तव में क्रूर
हैं?
स्वीडन के एक चर्च का कब्रिस्तान
कुछ वर्षों के
बाद मुझे छः महीने स्वीडन में रहने मौका मिला. वहां हमारा निवास एक बड़े चर्च के
साथ स्थित था. चर्च के परिसर में एक बड़ा कब्रिस्तान था. कब्रिस्तान और हमारे घर की
दीवार सांझा थी और हम कब्रिस्तान में आते जाते लोगों को देख सकते थे. वहां सभी उम्र
के स्वीडिश लोग आया करते थे. इतवार को बहुत लोग आते थे. कब्रिस्तान में चर्च की ओर
से रेक (rake)\ और झाडू आदि उपकरण रखे होते थे. लोग आते, रेक
या झाडू उठाते और अपने प्रियजन की कब्र के आसपास के क्षेत्र को साफ करते, कब्र पर फूल चढाते, मोमबत्तियां
जलाते और प्रार्थना करते थे. उनके चेहरों ऐसा लगता कि वे बहुत ही सांत्वना महसूस
कर रहे थे। यद्यपि हमारे लिए अनुभव नया था, पर मुझे और मेरी पत्नी को इन लोगों का इस तरह अपन्रे दिवंगत
साथियों को याद करना बहुत ही सुखद लगा करता था.
आज तक मेरी समझ
में यह नहीं आ सका है कि क्या ठीक हैं, अपनों की याद को कब्र के रूप में सहेज कर
रखना या फिर मरने के बाद उनको जितना जल्दी हो सके शमशान पहुंचा कर जला देना.
आप लोग भी इस विषय पर अपनी राय देंने की कृपा करें.
डॉक्टर परमार साहब,
ReplyDeleteनमस्कार!
मैंने जो अपने पूर्वजों से सीखा है, उसके अनुसार वैदिक परंपरा में हम पूर्वजन्म में विश्वास रखते हैं। आत्मा परमात्मा का अंश माना जाता है। शरीर एक मंदिर है जिसमें आत्मा वास करती है। जब आत्मा मृत शरीर को छोड़ जाए तो उस शरीर से प्यार करना मात्र भ्रम है। मैन यह भी सुना या पढ़ा है कि हिन्दू परंपरा के अनुसार शरीर को इसलिए जलाया जाता है ताकि पांच तत्वों से बना यह शरीर पुनः उनमें विलीन हो जाये। जलाने से अग्नि, पृथ्वी, वायु और आकाश को प्राप्त होता है और अंत में अस्थियों को जल में प्रवाहित कर देते हैं ताकि जल में में भी मिल जाये। वैदिक परंपरा में महान ऋषियों और योगियों को समाधि भी दी जाती है। परंतु ऐसे भी संत हुए हैं जिन्होंने स्वेच्छा से शरीर छोड़ा और स्वयं को अग्नि में संस्कार करवाने को कहा। मैं अधिक नहीं जानता हूँ इस विषय में, परंतु यह जरूर कह सकता हूँ कि लाइबेरिया जैसे देशों में सभ्यता बहुत बाद में पहुंची है। वे लोग इस्लाम और क्रिश्चियनिटी से प्रभावित हैं। उनका आध्यात्मिक स्तर अभी शारीरिक प्रेम और मोह तक सीमित है।
डॉक्टर परमार साहब,
ReplyDeleteनमस्कार!
मैंने जो अपने पूर्वजों से सीखा है, उसके अनुसार वैदिक परंपरा में हम पूर्वजन्म में विश्वास रखते हैं। आत्मा परमात्मा का अंश माना जाता है। शरीर एक मंदिर है जिसमें आत्मा वास करती है। जब आत्मा मृत शरीर को छोड़ जाए तो उस शरीर से प्यार करना मात्र भ्रम है। मैन यह भी सुना या पढ़ा है कि हिन्दू परंपरा के अनुसार शरीर को इसलिए जलाया जाता है ताकि पांच तत्वों से बना यह शरीर पुनः उनमें विलीन हो जाये। जलाने से अग्नि, पृथ्वी, वायु और आकाश को प्राप्त होता है और अंत में अस्थियों को जल में प्रवाहित कर देते हैं ताकि जल में में भी मिल जाये। वैदिक परंपरा में महान ऋषियों और योगियों को समाधि भी दी जाती है। परंतु ऐसे भी संत हुए हैं जिन्होंने स्वेच्छा से शरीर छोड़ा और स्वयं को अग्नि में संस्कार करवाने को कहा। मैं अधिक नहीं जानता हूँ इस विषय में, परंतु यह जरूर कह सकता हूँ कि लाइबेरिया जैसे देशों में सभ्यता बहुत बाद में पहुंची है। वे लोग इस्लाम और क्रिश्चियनिटी से प्रभावित हैं। उनका आध्यात्मिक स्तर अभी शारीरिक प्रेम और मोह तक सीमित है।
नमस्कार
ReplyDeleteहिन्दु धर्म में संसकारो का बड़ा महत्व है। दाह संस्कार भी उन्हीं संस्कारों में से एक संसकार होता है जिसे हम अंतिम संस्कार कहते हैं और यह संस्कार मृतक के परिजनों द्वारा उसकी आत्मा को परम् शक्ति अर्थात परमात्मा में विलीन होने के लिये किया जाता है,,,,,इस संस्कार का बड़ा महत्व है,,,,विस्तृत जानकारी गरुड़ पुराण में उल्लेखित है। परिजनों का हमारे समाज में उच्च स्थान रहता है, मृतयु के बाद हम उन्हे पूर्वज भी कहते हैं क्योंकि पूर्व कर्म बंधन के कारण वे इस मृत्युलोक से हम जीवात्माओं से पहले ही विदाई लेते हैं और पितृ लोक में रहने लगतें हैं और फिर अपने कर्मों के कारण पुनर्जन्म अथवा मोक्ष को प्राप्त होते हैं,,,,,,,हम भी अपने पितरों के लिये श्राद्ध आदि कार्य करके उन्हे हमेशा अपनी स्मरीतियों में याद रखते हैं,,,उनकी याद में गरुड़ पुराण , भागवत महापुराण आदि कथाएँ करवाते है,,,,,,
मैंने ये नहीं कहा कि हिन्दू धर्म में म्र्तकों का दाह संस्कार करना गलत है. मैंने तो केवल यह बताया है कि वे लोग हमारे बारे में इस रीति के कारण क्या सोचते हैं. मुझे दुनिया के बहुत से भागों में जाने और कई किस्म के लोगों से मिलने का अवसर मिला. ये दुनिया सचमुच ही बहुत विचित्र है. मैं अपने अनुभव अपने मित्रों आदि को अक्सर सुनाता रहता हूँ. मुझे कई मित्रों और मेरे परिवार वालों ने भी यह सलाह दी कि मैं इन अनुभवों का दस्तावेजीकरण करूं ताकि बाकी लोग भी इन बातों के बारे में जान सकें. इसी से प्रेरित होकर मैंने यह ब्लॉग शुरू किया है और मुझे खुशी है कि यह लोकप्रिय हो रहा है. इसे अब तक कोइ 70,000 से लोग पढ़ चुके हैं. आपका धन्यवाद. आगे भी लिखते रहिएगा.
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