आज कल किन्नो संतरे की बहार है. फलों की दुकानों पर कई महीनों से केवल यही संतरा दिख रहा है. बाकी सब किस्मों के संतरे इसने दुकानों से हटा दिए हैं. माल्टा तो काफी पहले से ही गायब हो गया है. हाँ सिट्रस फलों में अब कागजी निम्बू के अतिरिक्त कभी कबार मुसंबी के फल जरूर दिख जाते हैं.
पेड़ पर लगे किन्नो के फल
पर क्या आपको मालूम है किन्नो भारतीयों के
लिए एक बिलकुल नया फल है और इस फल को केवल 60 साल पहले ही भारत में लाया गया था.
इस फल का जन्म तीस के दशक में अमेरिका में हुआ था. तब इस बात का किसी को भी अंदाजा
नहीं था कि यह संतरा इतनी जल्दी मार्केट में छा जाएगा और सब संतरों माल्टों को
बाहर कर देगा. आज की तारीख में उत्तर भारत या पाकिस्तानी पंजाब में कहीं भी संतरे
या मालटे के बाग़ नहीं लग रहे हैं, लोग केवल किन्नो ही लगा रहे हैं.
किन्नो का जन्म
और भारत में इसका आगमन
कैलिफोर्निया
विश्वविद्यालय के फ्रूट ब्रीडर डा. एच बी फ्रॉस्ट ने वहां के रिवरसाइड रिसर्च स्टेशन
में किन्नो को संतरे की दो किस्मों “विलो लीफ” और “किंग” के मेल से संतरे दो नयी
किस्मे किस्मे “विल्किंग” और “किन्नो” तैयार की. भारत में इन दोनों किस्मों के ही
पेड़ लगाए गए पर किन्नो से अधिक अच्छे परिणाम मिले और इस किस्म ने भारत की सभी पारंपरिक
किस्मों को पछाड़ दिया और अब तो किन्नो का ही बोलबाला है.
रोपड़ चंडीगढ़ मार्ग पर बिकते किन्नो के फल
भारत में बड़े पैमाने पर किन्नो के पेड़ सबसे
पहले हिमाचल प्रदेश के धौलकुआं के फ्रूट रिसर्च स्टेशन में लगाए गए थे. किन्नो के
साथ संतरे की दो अन्य किस्मे नागपुर और सिरीनगर के पेड़ भी लगाए गए. इन दोनों
किस्मों का छिलका हाथ से छीला जा सकता है. किन्नो की तरफ शुरू में किसी ने ज्यादा
ध्यान नहीं दिया और लोगों तथा व्यापारियों द्वारा पारंपरिक संतरों को ही तरजीह दी
जाती रही. पर समय बीतने के साथ किसानों ने अनुभव किया किन्नो की खेती में साधारण
संतरों के मुकाबले बहुत लाभ है क्योंकि इसकी केवल उपज ही बहुत ज्यादा नहीं थी
बल्कि इसके फल छिलका सख्त होने के कारण यह लाने लेजाने में भी बहुत आसान थे. इसलिए
धीरे धीरे बाके किस्मे ख़त्म होती गयीं और केवल किन्नो के बाग़ रह गए.
बाबू तू ये कौन सा फल क्या
ले आया है
आज के लोगों को
यह जान के बहुत हैरानी होगी कि शुरू में इस संतरे को व्यापारियों ने एक दम रिजेक्ट
कर दिया था. पहली बार दिसम्बर १९६२ में मैं धौलाकुआं फ्रूट रिसर्च स्टेशन, जहां
मैं रिसर्च असिस्टेंट के तौर पर कार्यरत था, के फल अम्बाला शहर की फल मंडी में
बेचने के लिए ले गया. इन फलों में माल्टा, पारंपरिक नागपुरी संतरे और किन्नो संतरे
भी थे. मंडी में माल्टे और नागपुरी संतरे के फल तो हाथों हाथ बिक गए पर किन्नो के
लिए कोइ भी खरीददार आगे नहीं आया. मंडी के आढ़तियों और खरीददारों ने इस किस्म का फल
पहली बार देखा था. वे सब मुझसे पूछने लगे कि बाबू तू यह कौन सा फल ले आया है. ये
ना तो काट के खाने वाला माल्टा है और ना ही संतरा जिसके फल को आदमी छिलका उतार कर
खड़े खड़े खा सकता है. मैंने उनको समझाया कि यह एक नयी किस्म का संतरा है जो अमरीका
से हिन्दुस्तान में पहली बार आया है. फिर अपनी बात को थोड़ा और आसान बनाने के लिए
मैंने उनको समझाया की यह नयी किस्म संतरे और मालटे के मेल से पैदा की गयी है. पर
मंडी में आये हुए सभी खरीददार सोच में पड़ गए थे. वे कह रहे थे कि इस नए संतरे को
ग्राहक नहीं खरीदेगा. मैं बड़ी मुश्किल से उन लोगों की खुशामद करके उन फलों को भाव
की परवाह न करते हुए बेच सका.
किन्नो के फल
उस समय हम धौलाकुआं रिसर्च स्टेशन में काम
करने वाले किसी भी वैज्ञानिक ने यह नहीं सोच था कि अमरीका से लाया गया नया फल जो
ना तो संतरा था और ना ही पूरी तरह माल्टा था, स्वाद में थोड़ा खट्टा भी था और जिसमे
बीज भी ज्यादा थे, आने वाले वक्त इतनी बड़ी कॉमर्शियल हिट साबित होगा और संतरे और
मालटे की सब पुरानी किस्मों को मार्केट से बाहर कर देगा.
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