१९८८ में मुझे छः महीने स्वीडन में बिताने का अवसर मिला था.
मेरी पत्नी पुष्पा भी मेरे साथ थी. मुझे वहां यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रिकल्चरल साइंसेज
(एसएलयू) के फ्रूट बीडिंग डिवीज़न में चल रहे एक रिसर्च प्रोजेक्ट में बतौर गेस्ट
साइंटिस्ट काम करना था. यह डिवीजन दक्षिणी स्वीडन के गाँव बाल्सगार्ड में स्थित था।
हमारे लिए सबसे नज़दीकी शहर कृहनस्टाड था जो बाल्स्गार्ड से
12 किमी दूर 15,000 की आबादी का छोटा सा शहर था.
क्योंकि मुझे
इस काम के यूनिवर्सिटी से पैसे मिलने थे, इस लिए स्वीडिश क़ानून के अनुसार मेरी
स्थिति थोड़े समय के लिए रखे गए आप्रवासी कर्मचारी जैसी थी. इसके लिए स्थानीय पुलिस
के में पंजीकरण जैसी कुछ कानूनी औपचारिकताओं की भी आवश्यकता थी. मुझे इस बात का
पता स्वीडन पहुँचाने के बाद ही चला.
डिवीज़न ऑफ़ फ्रूट ब्रीडिंग की बिल्डिंग
मेरा ऑफिस ऊपर की मंजिल में दायीं ओर से दूसरे कमरे में था.
मेरा ऑफिस ऊपर की मंजिल में दायीं ओर से दूसरे कमरे में था.
हम जुलाई के महीने में स्वीडन पहुंचे थे जब वहां रात 10.00
बजे तक धुप निकली रहती थी और तब उसके बाद शाम होने लगती थी. यूनिवर्सिटी वालों ने
हमें कैम्पस के अन्दर गेस्ट हाउस में ठहरा दिया था. नयी जगह का वातावरण, विशेष कर
रात के दस बजे दिन ढलना और फिर सुबह दो बजे से पहले दिन निकल आना हम दोनों को बहुत
अजीब लग रहा था. इस से पहले भी हम दोनों कई बार विदेश में रह चुके थे पर दिन रात
का ऐसा विचित्र चमत्कार हमने पहली बार ही देखा था.
हमें वहां
आये अभी एक सप्ताह ही हुआ था कि एक सुबह मुझे डिवीज़न प्रमुख, डा. विक्टर ट्रैजकोवस्की
ने मुझे बताया कि कि हम दोनों को कृहनस्टाड पुलिस स्टेशन जाना होगा. मुझे यह बात
अजीब सी लगी. डा. ट्रैजकोवस्की ने मेरे चेहरे के भाव देख कर ताड़ लिया कि मैं इस
आमंत्रण से खुश नहीं था. उनहोंने तुरंत कहा कि यह एक साधारण कानूनी प्रक्रिया के
अतिरिक्त कुछ नहीं है और मैं इसकी कतई चिंता ना करूं. उन्होंने फिर आगे कहा कि वे
अपनी सैक्रेटरी क्रिस्टीना को मेरे साथ भेज रहे हैं. वह हमारे साथ रहेगी और सहायता
करेगी.
गर्मी के मौसम में छुट्टी के दिन ऐसा नज़ारा होता था कृहनस्टाड शहर का
हम पुलिस
स्टेशन पहुंचे. यह पुलिस स्टेशन हमारे पुलिस थानों से बिल्कुल अलग था. पुलिस
स्टेशन की तरह बिलकुल नहीं लगता था. ऐसा लगता था जैसे यह किसी होटल का रिसेप्शन
हो. सब कुछ शांत और साफ़ सुथरा. आने वालों के लिए आरामदायक सोफा सेट और कुर्सियां रखी
थी. चारों ओर नोटिस बोर्ड थे जिनमे लोगों को अपने कानूनी अधिकारों के बारे में
जानकारी के ब्रोशर और सूचनाएं लगी हुई थी. बहुत से ब्रोशर विशेष तौर पर विदेशों से
स्वीडन आये लोगों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी दे रहे थे.
थोड़ी देर बाद क्रिस्टीना हमें
एक कमरे में ले गयी एक पचास साल की महिला पुलिस अधिकारी सादे कपड़ों में बैठी थे।
क्रिस्टीना ने उसे हमारा परिचय दिया. महिला अधिकारी ने मुझे मेरे पेशे, स्वीडन की मेरी यात्रा का उद्देश्य और हमारे ठहरने की
संभावित अवधि के बारे में कुछ सवाल पूछे। सब बातचीत बहुत ही अच्छे माहौल में हुई
और उसने हमें बहुत सम्मान दिया. हाँ पर कोइ चाय वगैरा नहीं पूछी जैसा कि हम भारत
में करते हैं. यह शिष्टाचार स्वीडन में लगभग नहीं है। हाँ इंग्लैंड में यह निश्चित
रूप से है और वहां आगंतुकों चाय जरूर पूछते हैं.
स्वीडन की महिला पुलिस
पुलिस स्टेशन
की यह यात्रा हमारे लिए बहुत उपयोगी साबित हुई। हमें नोटिस बोर्ड पर लगे हुए एक ब्रोशर
से पता चला कि मेरी पत्नी को स्वीडन में काम मिल सकता था. स्वीडन के उस समय के
क़ानून के हिसाब से जैसे ही कोइ नागरिक १८ साल का हो जाता था, सरकार को उसे नौकरी
देनी पड़ती थी. यदि सरकार १५ दिन के भीतर नौकरी ना दे पाती, तो उसे बेकारी भत्ता,
जो उस समय ४००० स्वीडिश क्रूनर था, मिलना
शुरू हो जाता था. आपसे केवल इतना ही अपेक्षित था कि आप अपने पास के रोज़गार दफ्तर
को अपने बारे में सूचित कर दें.
हमने भी वैसा
ही किया. मेरी पत्नी को भी नौकरी की ऑफर आ गई. क्योंकि ये नौकरी दूर थी और मेरी
पत्नी वहां जाना आना संभव नहीं था, इसलिए हमने इसे स्वीकार नहीं कर सके. परन्तु
हमारे घर के ठीक सामने एक प्राइमरी स्कूल था. वहां जब कोइ टीचर अनुपस्थित होती, तो
वे तुरंत मेरी पत्नी को बुला लेते थे. इससे उनको भी गपशप करने को एक विदेशी मित्र
मिल जाती और मेरी पत्नी का भी वक्त कट
जाता. कुछ पैसे भी आ जाते जो हम भारतीयों का विदेशों में काम करते हुए मुख्य ध्येय
होता है.
जब हम वापिस
बाल्स्गार्ड पहुंचे तो डा. ट्रैजकोवस्की ने पूछा कि हमें स्वीडन का हमारा पुलिस
थाना कैसा लगा. मैंने तुरंत कहा कि बहुत ही अच्छा. मैंने आगे कहा कि सबसे अच्छी बात
यह लगी कि वहां कोइ भी डरावानी शक्ल वाला पुलिस “मैन” नहीं था केवल सुन्दर सुन्दर
पुलिस “वीमन” ही थी. डा. ट्रैजकोवस्की और बाकी लोग मेरी बात सुन कर खूब हँसे.